रोज़ प्रातः योग करना। शाम को टहलना यही दिनचर्या थी उनकी। पर दिन में पब्लिक डीलिंग होने के कारण जो मिल जाए खा लेना। वैसे मीठे का शौक भी था। घर का वातावण भी कुछ ऐसा जहां कुछ न कुछ पकवान रोज़ बनना।
भरी सर्दियों में योग हो गए। पर एक दिन शाम को जब मित्र के साथ टहल रहे थे सर्दी से उनकी छाती जकड़ गई। सांस फूलने लगी। जिस पार्क के पांच से अधिक चक्कर आराम से लगा लेते थे। दो में ही छाती में और हाथ में दर्द महसूस होने लगा। वो जो अंकल 70 वर्ष के थे और आंटी भी 62 की होंगी। आंटी और वो चक्कर लगते रहे।बैठा तो कुछ आराम मिला। अगले दिन फिर यही हुआ दो चक्कर बाद दर्द शुरू । उनसे तो कुछ नहीं कहा पर शाम को जाना बंद कर दिया। सुबह के योग यू ही चलते रहे। एक दिन तो आंटी दूसरी आंटी को लेकर ऑफिस आयी। उन्होंने पूछा तबियत ठीक है। मैंने कहा हां। मै अब नॉर्मल महसूस कर रहा था।पर मुझे सिग्नल मिल गया था कुछ गड़बड़ हो चुकी है।
कई संस्थाओं में पैर अड़ाए हुए थे। थोड़ा कम किया पर एक दिन हमारी संगठन की हमारी सहयोगी के पिता का निधन हुआ दोपहर को संस्कार होना था।
मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। फिर भी बाइक लेकर निगम बोध गया। वहा काफी धूल उड़ रही थी जो चेहरे से कपड़ों तक ढक चुकी थी। अब घर पर आया तो सोचा नहा लूं। पर जैसे ही बाथरूम में घुसा वो ही छाती फिर अकड़ गई दर्द होने लगा। हाथों में भी। मैंने कैसे भी पानी डाला और कपड़े पहन बाहर आया। थोड़ा लेट गया श्रीमती से छाती और सिर दबाने के लिए कहा। पर दर्द बढ़ता जा रहा था।
उसने पुत्र को कहा पर वो दूर कहीं था। उसने अपने मित्र को कहा। पर दर्द सहन नहीं हो रहा था। तो मैंने अपनी बाइक निकाली और श्रीमती को बैठने के लिए कहा। वो बोली वो आता होगा। मैंने कहा समय कम है। वो अनमने मन से बैठ गई।और मै सीधा पुष्पांजलि पहुंचा। रिसेप्शन के बाहर हमारे पुराने मित्र तिवारी जी मिल गए दोनों हाथों में थैले थे खुश थे। मैंने उनसे हाथ मिलाया वो कहने लगे में नाना बन गया ....उसी से मिलने आया हूं। मैंने उनको सुभकमनाए दी। पर वो कुछ और ज़्यादा बात करना चाहते थे।
उनकी बात वही रोक हम दोनों पति पत्नी इमरजेंसी में चले गए। डॉक्टर को बताया उसने तुरंत इसीजी और बीपी जांच की और तुरंत मैक्स के लिए रेफर किया।
वो हैरान था को ये शख्श इस हालत में अपने आप कैसे आया। व्हील चेयर आ गई थी। एम्बुलेंस में बैठाने के लिए मैंने कहा मै ऐसे ही लेट जाऊंगा। तब तक मेरा पुत्र उसका मित्र और मेरे रिश्तेदार भी आ गए थे। मुझे एम्बुलेंस MAX ले गई।
मै पूरे होशो हवास में था। इत्तेफाक से डॉक्टर का नाम भी मनोज कुमार था वो वहां के इंचार्ज थे वो भी प्रसन्न हृदय थे। उन्होंने सब जांच कर कहा स्टंट पड़ेंगे। अभी अभी वो ज़ी न्यूज के इंटरव्यू कार्यक्रम से आए थे।
ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। मेरे हाथ में उन्होंने कब सबकुछ कर दिया पता ही नहीं चला फिर मुझे ICU में शिफ्ट कर दिया गया।
ICU अनुभव अपना बहुत ही गंभीर होता है।वहा के स्टाफ ने बहुत ही प्यार से शिफ्ट किया। इंचार्ज वहा प्रिया थी। रात्रि में अलीशा नाम की लड़की मुझे डील कर रही थी। छोटी सी प्रसन्न स्वभाव की उसका चेहरा बिल्कुल मेरी छोटी बिटिया की तरह था उसे देखकर मैं अपना दर्द भूल गया था।
अब रात्रि में कह दिया गया था कि सीधे लेटना है करवट नहीं लेना। सीधे पैर की जांघ में ऑपरेशन हुआ था तो उसके उपर एक ईंट नुमा भारी चीज रखी हुई थी।अमित स्टाफ बार बार आकर मुझसे मेरा हाल पूछ रहे थे। रात में कई बार यूरिन आया तो मै तो उठ भी नहीं सकता था। शम्भू आ जाता था बैल बजाते ही पोट लेकर। वो बेचारा जैसे कोई अपना भी न करे, उससे ज्यादा सब करवाकर ले जाता था। रात्रि में चार से पांच बार ऐसा हुआ। दर्द में रात गुजरी।
प्रातः सुबह हुई स्टाफ आ गया। कुल्ला कर लिया। फिर जगन्नाथ नाम का किचन स्टाफ आ गया। वो मेरे लिए उतपम, दलिया सैंडविच और दूध लाया था। मैंने कहा नहीं खा पाऊंगा। उसने कहा खा लीजिए वरना दवाई कैसे खाएंगे। मुझे उसकी बात जची और मैंने वो नाश्ता ले लिया।
अब पूरा दिन अकेले काटना था। दोनों हाथो में तारे थी। सिर्फ पलंग ही आपका क्षेत्र था। मिलने का समय भी 11 से 11:30 बजे था उस आधे घंटे में पत्नी और पुत्र मिलने आ गए। पूरी रात वो यही वेटिंग रूम में रहे। पुत्र और भतीजा भी। उन्होंने बताया इतने लोग मिलने आए थे। अब धीरे धीरे दिन बीत गया। मैंने डायरी पेन और चश्मा मंगा लिया था वो आ चुका था।
अगली रात कुछ अच्छी गुजरी। सुबह सुबह अभी स्टाफ वही अपनी क्रिया में थे। पर उनकी इंचार्ज प्रिया कुछ अच्छे स्वभाव की थी। मैंने पूछा तो बताया केरल से है। उनका एक बालक है और पति दुबई में है। ऐसा कहते हुए वो भावुक सी हो गई। फिर उन्होंने बताया कि केरल एक सुंदर रमणीय जगह है पर वहा भी तीन वर्षो से अब गर्मी बढ़ रही है। कारण बताया पेड़ो का काटना और बड़ी बड़ी इमारतों का बनना। उसने बताया अक्सर वो गांव जाया करती है। मैंने बोला आप सब स्टाफ बहुत अच्छा काम करते है तो उसने बताया हम तो सेवा करते है। सभी स्टाफ बिल्कुल सेवा की तरह ही कार्य कर रहे थे।
अब वार्ड में भेजने की तैयारी हो रही थी। 6 फ्लोर पर 1622 नंबर कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। करीब 2-3 गंटे तक जो देखभाल ICU में हो रही थी वो नहीं थी। फिर तीन घंटे बाद वही व्यवस्थाएं सुचारू हो गई थी। श्रीमती और पुत्र भी वार्ड में आ चुके थे और मेरी स्थिति काफी ठीक हो चुकी थी। खुद बाथरूम तक जा सकता था। उपर ICU स्टाफ ने अपने व्यवहार से अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया था।
पर वार्ड में आने का जैसे सभी मिलने वाले इंतज़ार कर रहे थे।
अगला दिन रविवार था हम सब बातचीत कर रहे थे। स्टाफ अपने काम समय पर कर रहे थे। सुबह 6 बजे चाय। 6:30 बजे दवाई 8 बजे नाश्ता उससे पहले इंसुलिन 11 बजे फल 2 बजे भोजन 4 बजे चाय स्नैक्स 7 बजे भोजन और अंत में दूध। सफाई करने वाले चाहे मेरे रूम की हो, मेरे शरीर की हो, बेडशीट बदलनी हो, मेरे कपड़े बदलने हो कभी भी आपको कोई शिकायत का मौका नहीं।
रविवार 3 बजे तक ठीक बीता। 3 बजे शाम से रिश्तेदार, मित्रो के मिलने जुलना लग गया। डॉक्टर मनोज कुमार जी ने ज़्यादा लोगो से मिलने के लिए मना कर दिया था। इसीलिए पुत्र ज़्यादातर को फोन पर ही संतुष्ट कर रहा था।
फिर भी मिलने वाले जुगत लगाकर आ रहे थे। सुरेन्द्र पांडे जी का बरेली में गाड़ी का ऐक्सिडेंट हो गया था। उन्हें जैसे मालूम चला अपना वो सारा काम छोड़ मिलने आ पहुंचे। सभी एक बार मिलना चाहते थे बात करना चाहते थे। पर मै 2 घंटे में काफी थक गया था। मुझे अपने वरिष्ठ गुरमुख जी और आंटी जी का भी इंतज़ार था। मुझे लगा शायद उन्हें मालूम नहीं चला। कुछ समय बाद गुरमुख जी और रिहानी जी भी मिलने आ गए। वो दुखी थे क्योंकि गुरमुख जी आजसे 4 वर्ष पहले मिले थे। वो बहुत कमजोर स्तिथि में थे। पार्क के दो चक्कर भी नहीं लगा पाते थे। फिर हमसे जुड़े और योग किए। आज वो 70 वर्ष की आवस्था के में भी हमसे यंग थे। तो उनके परिवार से जुड़ाव सा हो गया था। श्रीमती जी के बताया की राजेन्द्र जी घर आए थे तो रो रहे थे। असल में क्षेत्र में किसी को अपेक्षा नहीं थी कि एक स्वस्थ व्यक्ति को भी अटैक हो सकता है। जो सभी के सुख दुख में काम आता हो। पर अपने शरीर का तो शर्माजी को ही पता था। ब्लड प्रेशर पिताजी से और शुगर माताजी से वंशानुगत आ गया था। ये काम तो आज से 10 वर्ष पहले हो जाता। योग ने और सैर से 10 वर्ष आगे बढ़ा दिया।
अगले दिन छुट्टी होनी थी। जो मिलने आ रहा था सुझाव दे रहा था इनसे किसी को ज़्यादा देर मिलने मत देना। आराम करवाना। पर उसकी खुद इच्छा थी मुझसे ज्यादा से ज्यादा बात करता जाए।
होली का प्रोग्राम था। तो सभी मित्रो में नीरसता आ गई। मैंने वहीं से हलवाई को 100 ब्रेड और दूध वाले को 25 किलो दूध का ऑर्डर दे दिया। और सभी को कहा त्यौहार पूरी खुशी से मनाना चाहिए। मेरा भी मन था। ज़िन्दगी में पहला अवसर था कि मै उनके बीच रहकर उसका आनंद नहीं ले पाऊंगा। मै थक गया था फिर सो गया। कई मित्र आए और मुझे सोता हुआ देख डिस्टर्ब ना करे चले गए।
देर रात्रि किचन के इंचार्ज आए पूछा कोई हमारे भोजन वगैरह में कोई कमी तो नहीं। मैंने कहा लाजवाब। पर मैंने कहा कल कोई साउथ इंडियन डिश नाश्ते में भिजवाए। तब उन्होंने कहा सर हमारे यहां फिक्स होता है फिर भी फोन पर पूछता हूं। तब उन्होंने कहा सर कल साउथ इंडियन डिश ही बन रही है। खुशी हुई।
अगली सुबह आज यहां से डिस्चार्ज होना हैं। चाय आ चुकी है। आज होलिका दहन है। आज पूजा होनी है। श्रीमती को पूजा के लिए घर जाना है। मै फ्रेश भी नहीं हुआ था। सफाई वाला आ चुका था। मैंने घर से शेविंग का सामान मंगवाया था। पर बताया था शेविंग करने आता है। फिर उसने फोन किया तो शेविंग वाला युवक आया उसने मेरी शेविंग की।
ऐसा लगता था कि आपके हाथ में चिराग है.. आई सी यू में मधु स्मिथ मुस्कान लिए बताइए क्या कर सकते है। चिराग रगड़ो तो प्रिया इंचार्ज ICU में उनके स्टाफ अमित, सुजीत,सेजिया सिंटू.. अपर्णा, निशा, सत्या, मीनू सभी आपकी सेवा में तत्पर।
वार्ड में डाइटीशियन चित्राजी मुस्कान लिए फ्लोर इंचार्ज
जुहेब अली, हाउस कीपर..स्टाफ बबिताजी, सोनिया जी.. पुष्पेन्द्र, रजनी फूड सर्विस, प्रेरणा शर्मा, सुनीता जी, नीरज, सुनील, अजय, रोहित, नंदिनी और डॉक्टर मोहित अरोड़ा, डॉक्टर निशांत त्यागी जी सदा सेवा में तत्पर रहते थे।
शायद ये सब भी ज़िन्दगी के अनुभव होते है। जहा अपने किसी के साथ कैसे व्यवहार किया है वो काम आता है। कहते है समाज को एक गाली दो तो चार वापस आती है। तो क्यों ना समाज को प्यार बांटा जाए। बताते है किसी ऐसे समय में सभी चाहते है ज़्यादा लोग ना आए और ना आए तो लगता है वो नहीं आए।इस भीड़ में भी मै खोजता रहा कुछ अपने बचपन के मित्र जो बड़ी बड़ी कसमें खाया करते थे मित्रता की और अपने चार खास रिश्तेदार जो शायद ज्यादा व्यस्त थे। एक तरफ वो भीड़ का समूह जो डॉक्टर के कहने से मुझसे मिल नहीं पा रही थी।
पर डिस्चार्ज होने सभीपरिवार के लोग खुश थे। घर में अलग कमरा साफ कर दिया गया था। पर्दे, चादर,..मेरे को जो भी सामान चाहिए था बता रहे थे पूरी तैयारी कर दी गई थी। मुझे हिदायत से दी गई थी कि आप किसी से 2 मिनट से ज़्यादा बात नहीं करेंगे।
पहले मैं डॉक्टर्स के नियंत्रण में था अब दोनों बेटियों और बेटे की। चार्ट सारणी सामने लग गई थी दवाई के और भोजन की। सभी मुझे इंस्ट्रक्शन दे रहे थे। 50 वर्षों में आज लग रहा था अब सभी बच्चे बड़े हो गए है।
इन सबमें को मुझे दुखद लग रही थी पहली होली 50 वर्षो में जो अपने मित्रो के साथ खेल नहीं पाऊंगा
मनोज शर्मा "मन"
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